रहस्य की रात भाग -7



न जाने क्यों उन चारों को झरझरा की बातों में सच्चाई सी नजर आ रही थी और उन्हें भय भी नहीं लग रहा था। झरझरा ने अपनी कमल से नयनों की पलकें झपकाई तो ऐसा लगा मानो कोई विदेशी गुड़िया हो। चारों मंत्रमुग्ध से देखते रहे। झरझरा ने कहना शुरू किया, ‘तुम्हें जिस साधु ने भड़काकर मेरे पास भेजा है उसका नाम अघोरगिरि महंत है। वह और मेरे पिता चौलाई विकट नाथ सहपाठी थे। अघोरगिरि बहुत महत्वाकांक्षी है वह अपने गुरु से द्रोह करके गुरुकुल से स्फटिक मणि ले भागा जो मणि समस्त ब्रह्माण्ड के सभी वस्तुओं की प्रदायिनी है। गुरु ने क्रोधित होकर अपने सुयोग्य शिष्य चौलाई अर्थात मेरे पिता को अघोर के पीछे लगा दिया कि उसे पाप का दंड देकर स्फटिक मणि ले आएं। मेरे पिता जंगलों में उसे ढूंढते हुए यहां तक आये और उनका अघोर से सात दिनों तक विकट युद्ध चला। दुर्भाग्य से मैं भी अपने पिता की मदद को बिना किसी से कुछ कहे चली आई और मुझे रण भूमि में देखकर मेरे पिता व्यथित हो गए और अवसर पाकर अघोर ने उन्हें मार दिया। इस युद्ध में जब दोनों युद्धरत थे,

 तब  मैंने स्वर्ण मंजूषा हथिया ली पर वहां से निकल न सकी। अघोर ने मुझपर हमला किया तो मैं बचते बचाते इस मंदिर में आ पहुंची। अघोर अपने पापों के कारण इस मंदिर में नहीं आ सकता। तो वह बाहर ही मेरी ताक में मंडराता रहता है। ऊपर की मंजिल पर उसके चेले चपाड़े धूम-धमाल करते रहते हैं, पर वे भी यहां गर्भगृह में नहीं आ सकते। देवी का सामना होते ही भस्म हो जाएंगे। तुम चारों जब राह भटक कर मंदिर के बरामदे में बैठे थे तब कुछ अविश्वसनीय सी लगने वाली घटनाएं हुई थीं न?  वो सब अघोर की ही माया थी। वो चाहता था कि तुम लोग मंदिर के बाहर निकलो ताकि तुम्हें अपनी बातों के जाल में फंसा कर स्फटिक मंगवा सके। बाहर जो एक पशु मानव है वह भी उसी का गुलाम और पापी जीव है। तभी तो अघोर के काम से तुम भीतर आये तो उसने तुम लोगों पर हमला नहीं किया। और देवी मंदिर के कक्ष का द्वार खुलते ही बेचैन हो गया। 
चारों मंत्रमुग्ध से कन्या की बातें सुन रहे थे। उनके मन से सारे संशय खुद ब खुद मिटते चले जा रहे थे। 
कहानी अभी जारी है ...
क्या झरझरा सच बोल रही थी?
क्या था उसका रहस्य?
आगे की कहानी पढ़िए भाग 8 में 


Post a Comment

0 Comments