मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्र चल रहा है। हिन्दू धर्म के अधिकांश घरों में माॅ की व्रत रखकर आराधना की जाती है। कुछ लोग नियमित नौं दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते है। माॅ दुर्गा की आराधना में कोई त्रुटि न हो इसलिए आईये जानते है दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की सम्पूर्ण विधि।
दुर्गा सप्तशती का पाठ
मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है दुर्गा सप्तशती। इसमें सात सौ मन्त्र माने गये है। जिनकी श्लोक संख्या 535 है, 57 उवाच, 42 अर्धश्लोक और पाॅचवें अध्याय में 66 अवदानों को एक-एक मन्त्र मानकर श्लोक संख्या 700 मानी गयी है। प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक में इसकी अक्षर संख्या 9531 दी गयी है। श्री अविनाश चन्द्र मुखोपाधाय ने इसमें पाठ भेद और मन्त्रभेद का बंगला लिपि में जो संस्करण प्रकाशित किया है। उसमें 313 पाठभेदों का उल्लेख किया है। साथ ही 33 श्लोक का भी पाठ टिप्पणी के रूप में कई जगह पर उदधृत किया गया है। जो अब सप्तशती से निकाल दिया गया है। इसी प्रकार दुर्गाभक्तिरंगिणी में शप्तशती की मन्त्र गणना चार प्रणालियों में उल्लेख है। 1-कात्यानी तन्त्र। 2- गौडपादीभाष्य। 3- नागोजीभटट। 4- गोविन्द की तरंगिणी में मन्त्र गणना की जो सूची दी गयी है जिससे प्रतीत होता है कि 108 मन्त्रों में भेद है। एक सूची में यदि एक श्लोक मन्त्र माना गया तो दूसरी सूची में वह श्लोक नहीं माना गया है। इन पाठ भेदों और मन्त्र भेदों के कारण आज कोई भी प्रति शायद प्रमाणिक नहीं है।
कैसे करें पाठ
मां दुर्गा का पाठ उनके छः अंगों के सहित करना चाहिए। ये अंग निम्न प्रकार से है...
- कवच।
- अर्गला।
- कीलक।
- प्रधानिक रहस्य।
- वैकृतिक रहस्य।
- मूर्ति रहस्य।
ऐसे करें मां दुर्गा की पूजा
सप्तशती रहस्य नामक पुस्तक में पाठ करने से पूर्व 11 प्रकार के न्यासों को करने का प्रावधान बताया गया है। दुर्गाभक्तितरंगिणी में सप्तशती का पाठ करने के 9 प्रकार बताये गये हैं.............
- महाविद्याः इसमें पहले, दूसरे और तीसरे चरित का फिर अन्तिम चरित और उसके बाद मध्यम चरित पढ़ा जाता है। इसमें महाविद्या का ही क्रम ग्रहण किया जाता है।
- महातन्त्रीः इसमें पहले चरित फिर अन्तिम चरित और उसके बाद मध्यम चरित पढ़ा जाता है।
- चण्डीः इसमें महाकविद्या का ही क्रम ग्रहण किया जाता है।
- सप्तशतीः इसमें पहले मध्यम चरित फिर आदि चरित और अन्त में अन्तिम चरित पढ़ा जाता है।
- मृतसंजीवनीः इसमें पहले अन्तिम चरित फिर आदि चरित और उसके पश्चात मध्यम चरित पढ़ा जाता है।
- महाचण्डीः इसमें पहले अन्तिम चरित और फिर मध्यम चरित और अन्त में आदि चरित पढ़ा जाता है।
- रूपदीपिकाः इसमें नार्वाण मन्त्र के साथ रूपं देहि, इस अर्धश्लोक का प्रत्येक श्लोक में संपुट लगाकर पाठ किया जाता है।
- चतुःषष्टियोगिनीः इसमें 64 योगिनियों की योजना करकर पाठ किया जाता है।
- पराः इसमें परा बीज की योजना की जाती है,परन्तु इन प्रकारों के अनुसार सप्तशती का पाठ करने पर अलग-अलग प्रकार के फल मिलते है। मातृकाभेदतन्त्र में एक सकृद पाठ का क्रम बताया गया है। इनके अुनसार विनियोग में सप्तशतीमाला मन्त्र मानी गयी है। पाठ के प्रारम्भ और अन्त में एक बीजात्मक नार्वाण मन्त्र का जाप करने का विधान है।
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