1996 में कोलकाता में खेला गया विल्स क्रिकेट वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल भारत अगर खेल के तौर तरीकों से हार जाता तो शायद ही कोई उसे याद रखता, वह भी हजारों खेले गए ऐसे मैचों में से एक होता। लेकिन उस मैच में भारतीय क्रिकेट टीम का हार की कगार पर पहुँचने पर विनोद काम्बली का रोना, दर्शकों द्वारा स्टेडियम में आगजनी करना, फील्डिंग कर रहे श्रीलंकाई खिलाडियों पर स्टैंड से सामान फेंककर मारना और अंतत: अंपायरर्स द्वारा श्रीलंका को विजेता घोषित कर दिया जाना। यह वह वजहें थीं, जिससे यह मैच आज भी लोगों की यादों में जीवंत बना हुआ है और इसके इर्द-गिर्द तमाम बातें कही जाती हैं।
उसी प्रकार गांधी की म्रत्यु भी अगर नेहरू, पटेल, अम्बेडकर, शास्त्री की तरह होती, उनकी म्रत्यु अगर 'हत्या' न होती, अगर उनकी गोली मारकर हत्या न होती, अगर उस हत्या में गोडसे की पृष्ठभूमि न होती तो गाँधी की प्रासंगिकता, गाँधी पर विमर्श और साक्षात गाँधीवाद इस दर्जे का न होता।
गांधी आतंकवादी नहीं थे, और इसीलिए गोडसे आज गाली हैं। और मुझे इस दौर में हैरानी नहीं होती है कि कुछ लोग गोडसे को पूजते हैं, उनके मंदिर बनाते हैं। जबकि इसी दौर में रावण और महिषासुर के यशगान के लिए, उनको नायक स्थापित करने के लिए राम और दुर्गा को घृणा का पात्र बनाने का काम भी लोग कर रहे हैं।
लेकिन गाँधी से नफरत की इन्तिहाँ होने पर भी वे अपने नंगे और बूढ़े शरीर में इटेलियन बरेटा पिस्टल से तीन फायर डिजर्व नहीं करते थे। गोडसे से सहानुभूति रखने वाले लोगों को लगता होगा कि गोडसे ने गाँधी को खत्म कर दिया, लेकिन मुझे लगता है कि वह गोडसे ही है जिसने गांधी को अमर कर दिया | गांधी को गैर प्रासंगिक करने के तमाम प्रयास इस तथ्य के आगे बौने हो जायेंगे कि एक ‘विचार’ से प्रेरित होकर एक नौजवान ने इस अस्सी साल के बूढ़े की गोली मार कर हत्या कर दी।
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